दिल की बात
दिल की बात
दिल से दिल की दिल्लगी कहती हो,
जो ये कहती हो बस खूब कहती हो।
आशना तू माना नही यहां किसी से,
आशिक़ों को क्यों शर्मसार करती हो।
हैं पुरनम निगाहें खामोशी से सजदा,
हद ही करती हो जो खफा रहती हो।
लब पर दुआएं रखकर क्यों उसकी,
खुदा से क्यों फिर तकरीर करती हो।
है सुकून तेरा क्या कहीं और 'भावी',
जो रोती हो तो क्या खूब हँसती हो।
