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दिल के रिस्ते

दिल के रिस्ते

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जब हम बच्चे थे सच में कितने अच्छे थे

उम्र में तो कच्चे थे पर रिश्तों में पक्के थे

नादानियाँ जरुर नहीं अच्छी थी

पर दिल की हर बातें सच्ची थी


पढ़े लिखे कम थे गम के पल नहीं कम थे

फिर भी रिश्तों में दौलतमंद थे

रिश्ते जरूरतों से नहीं, दिल से निभाए जाते थे

दोस्त की गलतियों को, पल में भुलाया जाता था


दोस्त की गलती को खुल के, दिल से बताया जाता था

फिर से ऐसा नहीं करोगे ऐसा वादा कराया जाता था

सजा तो तब भी दी जाती थी

अकेले में नहीं सरेआम दी जाती थी

कभी कान पकड़ के उठक बैठक


तो कभी खेल से कुछ पल

को बाहर बिठाया जाता था

तो कभी सारे दोस्तों का काम

अकेले कराया जाता था

पर दोस्त को बहुत वक़्त तक

नहीं तड़पाया जाता था


हँसके कुछ पल में ही गले लगाया जाता था

ये थे दिल के सच्चे और अच्छे राज

यही हैं बचपन की खुशहाली के राज।


आज उम्र में तो हम बढ़ गए,

पर रिश्ते सभी ढह गए

हाँ सच में हम खुद बदल गए

रिश्ते दिल से नही दिमाग से निभाते हैं


जरुरत है तो रिश्ते हैं,

जरुरत ख़त्म रिश्ते फ़ना

और खुद ही कहते हैं

जमाना कितना ख़राब है


दोस्त को गलत हो ये जताते हैं पर

जो दोस्त पूछे गलती अपनी, नहीं बताते हैं

गर दोस्त न निभा पाए कोई वादा तो 

उसपे कमियां, सिर्फ कमियां गिनाते हैं

उसके निभाए हर वादे को हम पल में भूल जाते हैं


हम भूल जाते हैं दोस्ती का मतलब

पल में भुला देते हैं अपने फर्ज को

और भूल जाते हैं पूछना और समझना,

के कहीं मेरा दोस्त खुद तो मुशीबत में नहीं है


क्यों खामोश है दोस्त मेरा

काश बचपन की तरह ही सही 

एक बार वजह जानने की

कोशिश तो कर लेते।


तो आज भी हम 

पैसों में नहीं रिश्तों में दौलतमंद होते

आज दौलत तो बहुत है पर खुशियाँ नहीं

आखिर क्यों ? 


हाथ जोड़कर करे "अजनबी" ये अर्ज सभी से

एक बार निभा के देखो अपने फर्ज सभी से

पल भर को भुला के गुरुर खुद का

अमन प्यार का हाथ बढ़ा दो

दिल के जीवन की बगिया में


फिर से फूलों की सेज सजा लो

महका दो जीवन को प्यार के बन्धन से

रिश्तों को मत तौलो पैसों से


पैसा बहुत कमाया पर रिश्तों पे काम न आया

मार के पैसे को ठोकर अब फिर से

कमाओ दिल के उन टूटे रिश्तों को

जो हर पल हर छड हरदम काम आयेंगे


कहते हैं.....

दोस्त होते ही ऐसे हैं

जो आँखों से आँसू और

दिल से गम को चुरा लेते हैं


ख़ुशी हो या गम संग हैं हरदम

निश्छल निस्वार्थ, बस प्रेम की दरकार

है एक विनय, आप करो स्वीकार

भुला के हर गुस्ताखी को तुम भी करलो


कोशिश फिर से उन अहसासों को जीने की

फिर से खोलो यारों संग तुम यूँ दिल के सारे राज 

के डाक्टर भी खेल न पाए दिल से, औजारों के साथ।


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