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दिल का दरवाजा

दिल का दरवाजा

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दिल में आज भी तुम्हारा नाम लिखा रखा है

मानो गुलदान में सूखा गुलाब सजा रखा है !


तुम आज भी दिल मे बसर करते हो

तुम्हारे नाम की पट्टी को दिल पर सजा रखा है।


तुम आज भी जिन्दा हो मेरे ख्यालों में

खुद को तुम्हारे नाम का दुपट्टा ओढ़ा रखा है।


तुम मस्त मलंग अपनी जिंदगी में खुश

आज भी तुम्हारी यादों को सीने से लगा रखा है।


तुम याद करो न करो मुझको अंजुम

मैने आज भी तेरे नाम से चिरागों को जला रखा है।


हकीकत में तुम मशरुफ़ हो खुद में

मैनें तो आज भी दिल का दरवाज़ा खुला रखा है।


तुम से बे

हतर कौन जान सकता है मुझे

ये सोच तेरे खतों को बिस्तर पर बिछा रखा है।


तुमसे ही मेरी सुबह औ शाम मेरी

सनम तेरे सिवा जिंदगी में क्या मजा रखा है।


तुम आये तो रोशन हो गई सूनी जिंदगी

नहीं तो इस रुखे बेजान मौसम में क्या रखा है।


तुम बन गए इस कदर लत मेरी

अब तो लगता है गैरत में भला क्या रखा है।


अच्छा सुनो,

तुम न जाते जिंदगी से गर तो कैसे पता चलता

तेरे बिन भी मेरे खुदा ने मेरे लिये रोशन चिराग रखा है !


तुम गए तो जिंदगी का नजरिया बदला

जाना मैंने तुमसे ऊँचा जिन्दगी का मुकाम रखा है !



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