अहं नदी अस्मि
अहं नदी अस्मि
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मैं नदी हूँ जीवनदायिनी !
देवी ! पालनहारा!
मेरे किनारे ही
उपजी कई सभ्यताएं
किया मैंने ही उनका परोपकार!
मैं हूँ भारत की आन बान शान
किसानों पर मैं ही करती उपकार
पर धीरे-धीरे मैं
खुद को खो रही कर रही
अपनी हालत पर चीत्कार!
चीख-चीख कर
ठहराना चाहती हूँ तुम्हें जिम्मेवार!
तुम ही हो वो जिसने
डुबो दी मेरी पतवार!
तुम भूल गये मुझ पर आश्रित कितने परिवार!
मेरे न होने से मच जाएगी कितनी हाहाकार!
मुझ से बनते सारे व्यापार
मैं ही हूँ जीवन का सच्चा आधार
न करो मेरी झूठी जय-जयकार
बन्द करो ये व्यभिचार!
जब से स्वार्थी बन गया इन्सान
पहले जैसे कहाँ रहे अब मेरे सरोकार