दिल है कि मानता नहीं...
दिल है कि मानता नहीं...
किसी की याद जब दिल में समा जाती है,
तो दिल की भी अपनी गति बढ़ जाती है।
उसकी याद हर पल दिल को तड़पातीहै,
और मिलने की आस सी हो जाती है।
दिल को बहुत समझाया,
पर वह तो समझना ना चाहे,
बात -चीत का दौर बंद होने के बाद भी,
उससे बार -बार बात करने को चाहे।
इस दिल पर अब ना चलता ज़ोर,
दिल है कि उसकी तरफ खिंचता चला जाए,
खुद को उसने बहुत समझाया वह तेरे काबिल नहीं,
पर दिल तो किसी के काबू में नहीं।
इसी कश्मकश में दिन बीत रहा,
पुरानी यादों से दिल टूट रहा,
कुछ समझ ही नहीं रहा कि किया क्या जाए?
इस बेसब्र दिल को कैसे समझाया जाए?
वह न तो दोस्त था, न तो दुश्मन,
फिर भी दिल उससे जुड़ता जाए,
उसकी यादों में खुद को खोता जाए।
काश! एक बार बात हो जाए,
मन की बातें सभी साझा हो जायें,
तो इस दिल को भी सुकून आ जाए।