इंसान...
इंसान...
आज की इस दुनिया में हर इंसान अकेला है,
जितने भी सुख -दुख आए सब उसने ही झेला है।
उसकी भीतर की दुनिया से वही है परिचित,
कैसे बताए वह लोगो को कि वह कितना है, व्यथित।
जीवन के झमेलो से वह हो चुका है त्रस्त,
इन सब से हो रहा उसे बहुत ज्यादा कष्ट।
कई बार वह इन सब से भागने की सोचता,
चाह कर भी वह उसे इसे छोड़ नहीं सकता।
परिस्थियों ने कई बार किया, उसे तोड़ने की कोशिश,
किंतु जड़ की तरह वह रहा हमेशा अडिग।
इस तरह हर सुख -दुख में वह जीवन की नाव खेता रहा,
और हर समय नित -नवीन कुछ सीखता रहा।
इस तरह सीख -सीख कर वह आगे बढ़ता रहा,
इसी से आज वह चाँद पर भी चढ़ा।
सभी समस्याओं का,उसने कोई ना कोई उपाय सोचा,
इसलिए,वह सबसे बुद्धिमान प्राणी कहा गया।
किंतु उसके स्वार्थ ने उसे लोभी बना दिया,
जिससे उसकी इच्छाओं का कभी न पूरन हुआ।
अपनी इस लालच में वह प्रकृति का नाश करता रहा,
और खुद के लिए स्वयं ही गड्ढे खोदता रहा।
आज उसकी इस लालच ने उस ऐसे भंवर में फँसा दिया,
जिससे निकालना उसके बस में ना हुआ।
लोभ ही है उसकी हर परेशानी का जड़,
जिसने उसका जीवन बना दिया है नर्क।
इच्छाओं का दमन ही है,एक मात्र छुटकारा,
तभी इस जीवन से हो पाएगा,उसका उबारा।