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Shweta Mishra

Inspirational

4  

Shweta Mishra

Inspirational

बेटी..

बेटी..

4 mins
320


मैं बेटी, एक परिवार की,

माता -पिता की राजदुलारी, दादी की बिटिया प्यारी।

सबने मिलकर मिझको पाला,

अपने संस्कारों में ढाला।


इस तरह मेरा बचपन बीता,

धीरे -धीरे बचपन पीछे छूटा,

अब तो मैं बड़ी हुई,

विद्यालय की तरफ अग्रसर हुई।

विद्यालय में की खूब पढ़ाई,

जिससे होती, मेरी बड़ाई।

यह सुनकर पापा खुश हो जाते,

पर वह इसे कभी न दिखाते।

विद्यालय में बहुत अच्छे दोस्त मिले,

हम सब के तो सारे गुण मिले।

दोस्तों से लड़ाईयाँ भी हुई,

पर सुलह भी बहुत जल्द हुई।

हँसते, रोते, गाते, मनाते समय बीत गया,

और सभी को अच्छे -अच्छे अनुभव दे गया।


अब विद्यालय छूटने की घड़ी आनेवाली थी,

क्योंकि वह तो दसवी कक्षा, पास होनेवाली थी।

कुछ समय में परीक्षा का परिणाम आया,

अंक देखकर पापा के दिल को चैन आया,

क्योंकि उनके विषय में ही उसने सबसे ज्यादा अंक पाया।

अंततः आज विद्यालय का साथ छूट गया,

और पिताजी द्वारा महाविद्यालय में प्रवेश करवा दिया गया।

पिताजी की बातों को गाँठ बाँधकर वह रोज विद्यालय जाती,

और समय पर ही हमेशा, अपने घर पहुँच जाती।

खूब पढ़ाई किया,

और बारहवी भी उसने डिस्टिनक्शन से पास किया।

पिताजी की हर बात उसके लिए लक्षमण रेखा होती,

उनकी बातों के अनुसार ही वह आगे बढ़ा करती।

अब पिताजी ने डी. एड में प्रवेश करवा दिया,

शिक्षिका ही बनना है,यह स्वयं ही बता दिया।


अब शिक्षिका बनने का सफ़र शुरू हो गया,

वहाँ भी उसके द्वारा अपना सौ प्रतिशत दिया गया।

कुछ अच्छे दोस्तों की संगत में दो साल कब बीत गए पता ही नहीं चला,

अब यह शिक्षिका बनने का सफ़र भी समाप्त होने चला।

यहाँ भी परीक्षा का परिणाम जब आया,

पचाशी प्रतिशत अंक देखकर पापा का दिल फुले न समाया।

इस प्रकार शिक्षिका बनने का सफ़र भी अपने अंतिम पड़ाव पर आ गया,

और उसे एक शिक्षिका के तौर पर पहचान दे गया।

अब पढ़ाई पूरी हुई, नौकरी का समय आया,

खुद हाँथ -पाँव मारकर एक नौकरी उसने पाया।

वहाँ खूब मन लगाकर बच्चों को पढ़ाया,

इस तरह कब वहाँ दो साल बीत गए, यह उसने पता भी न पाया।

इस प्रकार पढ़ाने की उसकी यात्रा शुरू हुई,

और वह भी हमेशा परिश्रम से कदमों को आगे बढ़ाते गई।

फिर वह समय आया जो हर लड़की के जीवन में आता है,

पिताजी द्वारा उसकी शादी के लिए लड़का खोजा जाता है।

कुछ ही दिनों में लड़का भी मिल जाता है,

और उसे शादी के बंधनों में बाँधा जाता है।


इन सब के बीच वह कब बड़ी हुई इसका उसे एहसास ही ना हुआ,

फिर भी उसके द्वारा खुद को हर परिस्थिति में ढाला गया।

शादी के बाद दुनिया बदल जाती है,

जिस माँ -बाप ने पाला था, आज वह उनसे दूर हो जाती है।

यही हर लड़की का नसीब होती है,

माता -पिता से बिछड़ना,उसके हांथों की लकीरों में होता है।

अब वह ससुराल आ गई,

एक नई घर की जिम्मेदारी उस पर आ गई।

उसने हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाया,

इन सब में परिवार ने भी साथ निभाया।

लड़की को लगा जो प्यार की कमी का एहसास हुआ था,

शायद अब वह पति द्वारा पूरा किया जायेगा।

उसका सोचा सच हुआ,

पति द्वारा उस पर खूब प्यार लुटाया गया।


जीवन की गाड़ी आगे बढ़ती रही,

और जीवन में नई खुशियाँ दस्तक दे रही।

जल्द ही माँ बनने का अवसर मिला,

जिससे घर में खुशियों का माहौल बना।

सबने बच्ची को खूब प्यार दिया,

और उसे अपने आँखों का तारा बना दिया।

इसी बीच एक तूफ़ान की दस्तक होती है,

सासु माँ को कैंसर की शिकायत होती है।

इसने घर की नाव हिला दिया,

सबके दिल में उन्हें खोने का एक डर बिठा दिया।

कहते हैं, हिम्मत से काम लो बुरा समय टल जाता है,

परिवार और डॉक्टर के साथ से यह समय भी हट जाता है.।

इसी बीच दूसरे बच्चे की आहट होती है,

इसे भी रखा जाए यह सभी की मंशा होती है।

कुछ दिनों में दूसरा बच्चा भी आ जाता है,

और पहली बच्ची के साथ वह भी पल जाता है।


शिक्षिका का कार्य भी चलता रहता है,

वह भी उसे नित -नवीन अनुभव देता रहता है।

प्रकार आज वह पापा की बिटिया बड़ी हो गई है,

और होने पैरों से आगे बढ़ रही है,

उसकी मेहनत ने आज उसे यहाँ पहुंचाया है,

जिससे उसने हर जगह अपने मजबूत कदमों को बढ़ाया है, आगे सफलता उसकी राह देख रही,

उसने तो अपने लक्ष्य को ही मछली की आँख की तरह पाया है।

यही बेटी होती है, जो एक नए घर की तक़दीर है होती,

इसने तो हर घर को संभाला है, अपने सूख को भूलकर दूसरों को पाला है।

आओ हर बेटी को मान दे, अपने हृदय में स्थान दें! 



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