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Randheer Rahbar

Romance

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Randheer Rahbar

Romance

"दिल -ए इज़हार"

"दिल -ए इज़हार"

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यूँ ही गुमसुम सी बैठी हो,

आसमां को घूरती।

फ़िज़ाओं की खता क्या है ?

जो ये गम छुपाती हो।


बारिश में भीगती, 

यूँ कंपकपाती हो।

बीच रास्ते,

मुझ से टकराती हो

खुली खिड़की, मेरे दिल की,

बताओ, क्यों ना आती हो ?

न जाने क्यों ?

यूँ ही, नखरे निभाती हो।


पलकें उठा कर देखो यूँ,

छुप - छुप कर क्यों,

नज़रें मिलाती हो।

तुम लहरों - सी समंदर की,

कभी आती, कभी जाती हो।

गर है ना मशकूक कोई दिल में,

क्यूँ मुझको सताती हो।


कभी खुल कर बयां कर दो,

मेरे दिल के आंगन में,

जाड़े की धुप सी,

जो चुपके से आती हो।                                                                                   

गेसुओं से इश्क़ क्यों है इतना ?

क्यूँ सुबह -सा चेहरे पर,

शाम लाती हो।


तुम्हारे इश्क की इंतहा को 

देखा है हमनें,

मेरे साये से लिपट कर जो 

अकेलापन निभाती हो।


चलो आओ चलें,

हाथों में हाथ लेकर,

उस डगर,

जो अपने सपनों के

घर को जाती हो।


यूँ ही गुमसुम सी बैठी हो,

आसमां को घूरती।

फ़िज़ाओं की खता क्या है ?

जो ये गम छुपाती हो।


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