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Dr. Razzak Shaikh 'Rahi'

Abstract

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Dr. Razzak Shaikh 'Rahi'

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धुनिया

धुनिया

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अपनी धुन में सदा मगन है

अजब है तू धुनिया

जैसा तू है वैसी तुझको

दिखती है ये दुनिया


अच्छा-बुरा तय करता तू

खुद ही तेरे वास्ते

तुझसे खुलते, तुझ तक आकर

रुकते तेरे रास्ते


अपने अंदर मगन है इतना

जैसे कमल में भौरा

खुदका विनाश कर रहा तू

बनके क्यूँ रे बावरा?


त्याग दे संकुचित वृत्ति

समेट विश्व का ज्ञान

छोड़ के सारी चिंताएं

तू कर ले खुद से पहचान


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