धरती करे पुकार
धरती करे पुकार
*धरती करे पुकार*
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कर पर्यावरण पर विचार कभी,रोक प्रकृति पर अत्याचार कभी।
कहर ढा रहा है प्रदुषण सुनो धरती की पुकार तो कभी।।
हवाएं कहीं रुक जाये न कभी , फूलों की डाली झुक जाये न कभी ।
बहने दो ये पावन झोंके, रूठ कर हरियाली चली जाये न कभी।।
बहारों में खुशबु आये न कभी, फिजां मन को भाये न कभी।
खुशबु समेट लो फूलों का, धुएं में छिप जाये न कभी।।
बादलों में घटा छाये न कभी, शाम सुहानी आये न कभी।
चूम लेने दो सावन को धरती , बिन बरसे उड़ जए न कभी।।
बागों में कलियाँ खिल पाये न कभी, फूलों में भवरा गुनगुनाये न कभी।
रोक लो बसंत के बहारों को, पतझड़ में बदल जाये न कभी।।
आकाश में पंक्षी चहके न कभी, बागों में खुशबु महके न कभी।
आओ धरा को कर दें हरा, प्रदुषण में घिर जाए न कभी।।
समंदर न हो जाये विकराल कभी, नदियां न बन जाए काल कभी।
बहक न जाये सुनामी लहरें, देखो पृथ्वी का हाल तो कभी।।
धरती हो जाये बंजर न कभी, मातम का ना हो मंजर कभी।
आओ धरा का ऋण चुकाएँ ,एक एक पेड़ लगाकर कभी।
एक एक पेड़ लगाकर कभी।।