धरती का जन्नत
धरती का जन्नत
कैसा था धरती का वह जन्नत
बदला गया इसे जहन्नुम में
बोलते गए बेरहमी वो कहानियां
इस जन्नत के एक एक पेड़ ने
पीठा गया, रौंधा गया, जुल्म किया
इंसानियत नहीं थीं उन राक्षसों में
बच्चे, बूढे, नारी सब एक थे
जुल्म के उनकी नज़रों में
आंख बंद करके बैठे थे
सत्ता के वे राक्षस
समर्थन दिया जा रहा था सीधे
लाचारी का कारण देते हुए
ब्रेन वाश किया गया
पीड़ितों के औलादों को
रास्ते से भटका गया
देश के युवा लोगों को
बदलना हैं फिर हमें
इस जहन्नुम को जन्नत में
दिलाना हैं इंसाफी
बसाना हैं इंसानियत।
