बचपन
बचपन
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ऐ बचपन
गया तू कहां
मुझे छोड़कर
जिंदगी के इन
कांटों के बीच
कितना मस्त थे
कितना व्यस्त थे
दोस्तों के बीच
खेलते थे खुलकर
सारे ईगो छोड़कर
कहां से आये
बिन बुलाए ये मेहमान
तन मन में छा गये
ईर्ष्या, क्रोध, लालच
अरिषडवर्ग एक समान
ऋग्ण शरीर मेरा
तड़प रहा है
तुझे पाने को
क्यों सता रहे हो
दिखाते हुए तेरे जीभ को
फिर से खेलूं मैं
गोली, लट्टू, कबड्डी
न रहे कोई हया
भूल जाऊं मैं
ये सारा जहां
सुनो मेरी विनती
मुझसे ये नहीं बनती
और अधिक न बताना
जरा के इस अंतिम क्षण में
एक बार गले लगाना।
