नारी
नारी
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सांझ ढलती जाती है
सभी थके हारे चलते हैं
अपने घोंसले, आराम करने
लेकिन नारी फिर से उठती है
चाय/नाश्ता, भोजन बनाने
थके आए अपनों की सेवा करने ।
मन के अंदर से एक आवाज ने पूछा,
'क्या तुम नही थकी हो,
तुम भी तो बाहर से आई हो,
तुम्हें चाय पिलाने वाले कोई नहीं ?"
एक और आवाज बोली,
"नहीं, ये सब सवाल मत पूछो,
तुम हो नारी, जो
"कार्येषु दासी, करणेषु मंत्री,
क्षमया धरित्री;..... ।"
"अरे कब होगी इन आरापों से मुक्त"
एक और आवाज बोली,
"नहीं, मुझे नहीं होना
इन आरोपों से मुक्त,
मैं इसमें खुश हूं ।"
