STORYMIRROR

Deepshikha Nathawat

Abstract Inspirational

4  

Deepshikha Nathawat

Abstract Inspirational

धर्म की माँ

धर्म की माँ

1 min
281

आज कि कविता मेरी धर्म की माँ को समर्पित!

आई थी मैं माँ जब तेरे शहर में , कोई नहीं सहारा था


बहुत परेशां थी मैं उस घड़ी सुन ,तुने गम से उभारा था

तरसी थी जिस ममता के लिए मैं, थामा हाथ हमारा था


देखा हरपल संघर्ष तुने मेरा दूर किया हर अंधियारा था

छत दी, प्यार दिया, सही गलत का अर्थ समझाया था


सोचती हूँ कभी तो क्या मेरी माँ ने इतना कर पाया था

तुने दी एक सच्ची सखी माँ तेरा प्यार मुझमें समाया था


माँ दिया साथ हर घड़ी जब मेरा अपना भी यहाँ पराया था।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract