प्रेम व्यथा
प्रेम व्यथा
इस अप्रैल की चुभती धूप में
तुम्हारा प्रेम ही मुझे छांव देता है
तेरे होने का मुझे आभास देता है
क्या तुझ तक नहीं पहुंची मेरी पीर ?
मेरे होने का भी तुझे अहसास देता है
ये प्रेम की व्यथा नहीं तो और क्या है
तू बहुत दूर है पर हमेशा मेरे पास रहता है।

