STORYMIRROR

Deepshikha Nathawat

Abstract Tragedy Fantasy

4  

Deepshikha Nathawat

Abstract Tragedy Fantasy

भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार

1 min
304

फैल रहा है चारों तरफ घना लालच का बाजार

कितनी भी कोशिश कर लो कम ना होगा भ्रष्टाचार

चाहे करवाना हो दाखिला चाहे हो कोई जमीन का मामला

देनी होगी मोटी रिश्वत तभी होगा हल ये मामला

फैल रहा है चारों तरफ घना लालच का बाजार

कितनी भी कोशिश कर लो कम ना होगा भ्रष्टाचार

अयोग्य को मिलता है पद भ्रष्टाचार के बल पर

योग्य लटक जाता फांसी पर हार के अपना सब्र

फैल रहा है चारों तरफ घना लालच का बाजार

कितनी भी कोशिश कर लो कम ना होगा भ्रष्टाचार

गरीब और हो रहा गरीब अमीर हो रहा और अमीर

भ्रष्टाचार ने फैला दी है चारों तरफ अपनी जंजीर

फैल रहा है चारों तरफ घना लालच का बाजार

कितनी भी कोशिश कर लो कम ना होगा भ्रष्टाचार

नेता दिखते चुनावों के समय वोट मांगते फिर हो जाते छूमंतर

भ्रष्टाचार से खुब कमाते पैसा और दिखाते खुद को बेहतर

फैल रहा है चारों तरफ घना लालच का बाजार

कितनी भी कोशिश कर लो कम ना होगा भ्रष्टाचार। 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract