दगा
दगा
मुझे दगा देने वाले, दगा दे के रोएं।
मैंने किया माफ उनको और नींद चैन की सोए।
हालात मेरे परमात्मा ने संभाले
उनसे भी बेहतर होए।
मुझे दोस्त अब उनको कभी मिलेगा ना कोए।
उन्हें मैं सच्चे मन से प्यार किया था।
क्या कुछ ना उनके लिए किया था।
बस लालच के वश होकर उन्होंने मुझसे दगा किया था।
यही वह समय था जब मैंने
अपने बेगानों को जान लिया था।
उनकी इस दगा के कारण ही
मजबूत मैंने खुद को किया था।
जीवन पुनः जब आरंभ किया तो,
अपने रास्ते का मुझे स्पष्ट पता था।
खुद से ही जीवन जो जीना सीखा,
मेरे पीछे पूरा काफिला खड़ा था।
पीछे मुड़कर मैं फिर ना देखा
हर कदम आगे को ही होए।
मुझे दगा देने वाले दगा देके रोए।
दुखी हुए वह बहुत जब मेरा विश्वास थे खोए।
