देश के हत्यारे..?
देश के हत्यारे..?
सरहदों में बंटे,
कितनों के लहू बहे।
उन बेगुनाहों के हत्यारे...कौन?
बंद पड़ी फाइल में,
कानून ने जब न की सुनवाई।
बेगुनाही की सच्चाई,
जब ख़रीद न पाई गवाही।
जीते जी मरे जो लोग
उन बेगुनाहों के हत्यारे ...कौन?
देवी रूप नारी तो पूजा।
औरत को खिलौनों ही सोचा।
बलात्कार जब बच्चियों का होता।
उन मासूमों के हत्यारे....कौन?
वो सब लोग......हत्यारे है।
जो चुपचाप देखते रहते है।
अन्याय के खिलाफ,
आवाज़ नहीं उठाते है।
और अन्याय सहते जाते है।
सिर्फ अपना आप बचाते है।
एक परिवार,
एक समाज,
एक सभ्यता के
हत्यारे बन जाते है।
