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कभी-कभी ज़िन्दगी,
अजीब सा सवाल करती है।
मैं कसमक़श में रहता,
क्यों मेरा, ऐसा हाल करती है।
जो है ही नहीं,
क्यों उसे सामने लाती है !
और जो है उसे,
क्यों ! दूर ले जाती !
क्यों अनबने से सपने,
सजने लगते हैं आंखों में !
क्यों कुछ अनजाने से,
अपने लगते हैं, अनजानों में !
अपना साया, है तो अपना,
पर अपने साथ नहीं ,
क्यों अपने आप से ही,
मिलने की आस नहीं।
पर, है तो सही, कोई डोर,
जिसका इक छोर मेरे पास,
इक किसी और के हाथ।
मेरा क्या है, कर्म तो मैं,
करता ही रहूँगा, हमेशा।
सफल चाहे वो हो,
या वो लगे मेरे हाथ।
