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Satyendra Gupta

Abstract

4.5  

Satyendra Gupta

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देखा है कभी मैंने

देखा है कभी मैंने

1 min
405


देखा है कभी मैंने,

सर्पों को आदमी से डरते हुए,

देखा है कभी मैंने,

आदमी को सर्पों से डरते हुए,

डरते है दोनों,

सिर्फ बचाने के लिए अपने आपको,

कभी सर्प डस लेता है आदमी को,

सिर्फ बचाने के लिए अपने आपको,

कभी आदमी मार देता है सर्प को,

देखा है कभी मैने ।


देखा है कभी मैने,

हंसते हुए लोगो को,

कभी दूसरों की खुशी में हंसते हुए,

कभी दूसरों की गम में हंसते हुए,

कभी दूसरों की मुश्किलों में हंसते हुए,

हंसना भी कई अर्थ बता जाते है,

देखा है मैने हंसकर दूसरों को चिढ़ाते हुए।


देखा है कभी मैंने,

लोगों को रोते हुए,

कभी दूसरों के गम में रोते हुए,

कभी दूसरों के खुशियों में रोते हुए,

कभी अपनों के बिछड़ने के गम में रोते हुए,

रोना भी कई अर्थ बता जाते हैं,

देखा है मैने खुद रोकर अपने मन को हल्का करते हुए।


देखा है मैंने कभी,

अपने माता पिता को खुश रखते हुए,

देखा हैं मैने कभी ,

अपने माता पिता को वृद्धा आश्रम में छोड़ते हुए,

देखा हैं मैंने कभी,

भाइयों को प्रेम से रहते हुए,

देखा है मैंने कभी,

भाइयों को धन के लिए आपस में लड़ते हुए।


ये जीवन दो चार दिन की है,

जी लो जिंदगी हर समस्यायों को सुलझाते हुए,

जी लो जिंदगी हर समस्यायों को सुलझाते हुए।


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