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Jyoti Agnihotri

Abstract

5.0  

Jyoti Agnihotri

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ज़िन्दगी

ज़िन्दगी

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वक़्त की करवटें तजुर्बे की

सिलवटो में बदलती रहीं।

जिन्दगी मेरी गिरती संभलती रही,

हर पल ये मुझमें कुछ बदलती रही।


छूटा जो बचपन तो जवानी मिली थी,

मासूमियत को नई रवानी मिली थी ।

न जाने अठखेलियां कब संजीदगी में बदली,

जिन्दगी को मेरी भी इक कहानी मिली थी ।


समझते समझते समझ में ये आया,

परिस्थतियों ने मिलकर

जिन्दगी की राहें चुनी थीं ।


वक़्त ने भी मेरी कहाँ कब सुनी थी,

बचपन मेरा बुढ़ापे में बदला,

क्योंकि यही थाती वक़्त ने चुनी थी।


हर पल जिन्दगी बदलती रहती है,

आज को कल में बदलती रही है।


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