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Akanksha Gupta (Vedantika)

Abstract

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Akanksha Gupta (Vedantika)

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एक माँ।

एक माँ।

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एक माँ की गोद में एक नन्हे बालक को देखा,

एक नवजात पुष्प एक कली से लिपटा हो जैसे,

मैने उसकी सुगंध से अपना जीवन महकते देखा।


एक माँ की उंगली थामे एक नन्हे बालक को देखा,

एक बादल का टुकड़ा उड़ रहा हो हवा के पीछे जैसे,

मैने हल्की फुहार से अपने मन को भीगते देखा।


एक माँ के आँचल में ढका हुआ एक नन्हे बालक को देखा,

एक नवजात पंछी छुप रहा हो बुराई के तूफान से जैसे,

मैंने घनी धूप में छाया से अपने को ढकते हुए देखा।


एक माँ के पीछे पीछे भागते हुए एक नन्हे बालक को देखा,

एक अबोध हिरण अपनी जिंदगी ढूंढ रहा हो जैसे,

मैंने सपनो के पीछे जाते हुए अपने मन को देखा।


एक माँ की याद में एक नन्हे बालक को देखा,

एक गुजरा हुआ कल लौट कर आ गया हो जैसे,

मैंने अपने आप को अपनी माँ की गोद में देखा।


एक माँ को एक जीवन में सदियों को जीते देखा,

एक पेड़ गुजर चुका हो हर आँधी से जैसे,

मैंने अपने आपको उनकी खुशियाँ जीते देखा।


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