देख रहा हूं
देख रहा हूं
देख रहा हूँ ज़माने की दहलीज को
अपनों के सितम और तहज़ीब को
नाम बड़े-बड़े, काम उनके छोटे-छोटे
देख रहा हूँ जग की फिजूल प्रीत को
दूसरों को सताकर बहुत हंसते है,
देख रहा हूँ जग की निर्दयी रीत को
देख रहा हूँ जमाने की दहलीज को
दुःख के समय अपनों की तमीज को
जितने ज्यादा पास होने का दावा,
उतना वो शख़्स होता कड़वा मावा,
देख रहा हूँ, रोशनी में तम की जीत को
ख़ुद के पास बने आईने के अतीत को
देख रहा हूँ ज़माने की दहलीज को
अपनों के सितम और तहज़ीब को
फिर भी जीना तो है, जहर पीना तो है,
फेंक रहा हूँ, अब भीतर के कंक्रीट को
बन रहा हूँ, भीतर से जलते दीप जैसा,
मिटा रहा हूँ, मोह-माया, निशा के गीत को
देख रहा हूँ ज़माने की दहलीज को
बदल रहा हूँ, जी रहा हूँ आज ख़ुदी को
