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डरा सहमा अफ़साना

डरा सहमा अफ़साना

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डरा हुआ सहमा हुआ एक अफ़साना है,

थिरकते लफ़्ज़ों में दिल की बात,

आँखों की पुतलियाँ टटोलती है आज,

कल था एक ज़माना नूर का भी,

आज उँगलियों से लिखा फ़साना है।

 

डरा हुआ सहमा हुआ एक अफ़साना है,

अरे तनहा, तस्वीरों में तसव्वुर गुम है,

आँखों की तसल्ली आज बहाना है,

कितनी सदियाँ कितने शहर कल थे,

आज एक मकान उनका फ़साना है। 

 

डरा हुआ सहमा हुआ एक अफ़साना है,

जब भी मोहब्बत की बात होती है,

मेरी आँखों की नमी साथ होती है,

कितना प्यार करे कोई किसी से यहाँ,

प्यार का अपना अंदाज़ अपना फ़साना है,

डरा हुआ सहमा हुआ एक अफ़साना है।


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