डर
डर
डर हमारी जिंदगी को कर देता जहर
हंसती जिंदगी की खुशियां लेता हर
यह हमको तिल-तिल कर मारता है,
हिमालय को भी बौना कर डांटता है,
डर फ़ौलादी का भी काट लेता सर
डर हमारी जिंदगी को कर देता जहर
आंसू में आग नही जीतनी डर में है,
ज्वालामुखी से ज़्यादा बरपाता कहर
जिसके भीतर कोई डर घुस गया है
वो जिंदा होकर जीता रहता मर-मर
डर हमारी जिंदगी को कर देता जहर
खिलती हुई बगिया में देता पतझड़
जो अपने इस डर पे काबू पा लेता,
जिंदगी में बहाता हरियाली की नहर
फ़लक भी उसके आगे झुक जाता है
जिसके पास डर को डराने की नज़र
डर उन्हें डराता है,जो यूँही घबराता है,
लड़नेवाले से खुद जाता है,ये सिहर!