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Husan Ara

Abstract

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Husan Ara

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डोर

डोर

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जीवन ने हमें

एक डोर में बांधा

फिर क्यों ये अहंकार

क्यो खुद को बांटा


सहेज कर रखी

हर याद

हर बात

वो जिनमे अपनत्व था

रिश्तों की पोटली

को बांधा

भी सख्त था


मगर सिर्फ कुछ

गलतफहमियां हुईं

कुछ ज़्यादा उम्मीदे

जगा ली

अपनी हर बात सही लगी

उनकी दिल को लगा लीं


दोस्त हम खुद ही चुनते

रिश्ते तो कुदरत ने बनाए

फिर क्यो कर बैठे

अपनो को पराए


पर हम रहे उलझते

एक दूसरे से

एक दूसरे पर निशाना साधा

भूल रहे हम

जीवन ने हमे

एक डोर से बांधा


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