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Aman Barnwal

Abstract

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Aman Barnwal

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ढूंढ़ते हैं

ढूंढ़ते हैं

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चढ़ा कर पर्दे अवसादों पर

कुछ इंसान प्यार ढूंढते हैं।

लगाकर तिलक माथे पर 

जनेऊधारी यार ढूंढते हैं।


दिल नहीं ढूंढ़ते इंसान पर

उपनाम के प्रकार ढूंढ़ते है

 मिल जाए कोई काबिल अगर

नफरत के खातिर खार ढूंढते हैं।


बांट देते है धर्म से कभी

कभी जात से बांट देते है। 

अधिकारी कर्मी के आगे कभी

हद की लकीर काट देता है।


ऊंचे लोग क्यूं भगवान को

पूजकर भगवान बन जाते हैं।

और कोई सच्चा सेवक दिखे तो

नफरत से रोड़े अटकाते हैं।


दूसरों की काबिलियत को मार कर 

अपनों में सांस फूंकते है।

प्यार के शब्दों में लपेट कर

कुछ लोग नफरत थूकते हैं।


इनके अपनत्व के घेरे में

जाने कौन कौन आते हैं।

जब भी सामने मिलते है 

ये मुझे भी अपना बताते हैं।

कवि हो कर भी मैं ना जाने क्यूं

इनसे विचलित हो जाता हूं

उम्र भर न्याय पढ़ने वाले में भी

जब केवल अन्याय मैं पाता हूं।


खाते है उसके उगाए अन्न और 

हाथो में अपने स्वाद ढूंढते हैं।

सारे पीपल काट काट कर अपनी

झाड़ के लिए खाद ढूंढते हैं।


घोड़ों को बांध देते है रस्सों से

और गधों में अपवाद ढूंढते हैं।

अगर फिर भी कोई आगे बढ़े तो

करने को कोई विवाद ढूंढते हैं।


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