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Usha Gupta

Abstract

4.5  

Usha Gupta

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ढहती स्मृतियों की इमारत

ढहती स्मृतियों की इमारत

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कितने ही अरसे के बाद मिलने,

लगे हैं अब फुर्सत के कुछ पल,

इन पलों में चली गई निगाह,

स्मृतियों की इमारत की ओर,

देखा कि ढ़हने लगी है यह अब,

होती थी बुलन्द जो किसी ज़माने में।


चलो कर लूँ निरीक्षण,

स्मृतियों की ढ़हती इमारत का,

क्या यादें बची हैं क्या बिखर गई,

बीन लूँ बिखरी यादों के कुछ मोती

जाने दूँ बचे कंकड़ पत्थर,

 दूँ कर मरम्मत इमारत की।


चली गई उस कमरे में पहले,

चिनी थीं दीवारें जिसकी,

बचपन की स्मृतियों से।

थीं बहुत मज़बूत ये दीवारें,

लगा था सीमेंट इसमें,

माँ-पापा, भाई-बहन और भाभियों

के असीमित एवं चिरस्थायी प्यार का।

चलचित्र की तरह घूमने लगी आँखों में यह स्मृतियाँ,

पापा कहते अपनी सबसे लाड़ली बेटी,

तो लगती रोने माँ देख ज़रा सा भी बीमार मुझे,

 भाई-बहन रहते तैयार हर समय करने पूरी हर इच्छा मेरी,

नहला देतीं भाभियाँ अपने लाड़-दुलार के रस से,

देख यह भर गए नयन प्यार और सम्मान से।


बारी आई अब मित्रों के कमरे की,

यह क्या? ढ़ह गई थीं कुछ दीवारें,

शायद थीं ये औपचारिकता की रेत से बनी,

पर थी कुछ अभी भी मज़बूती से खड़ी,

 जुड़ी थीं जो मेरी अंतरंग सखियों के,

 प्यार के सीमेंट से,

देख यह छलकने लगा मन अपनेपन के भावों से।


चलें रिश्तेदारों के कमरे में 

देखें हाल है क्या वहाँ का भी,

अरे-अरे हो गई हैं कई दीवारें 

ज़र-ज़र यहाँ भी, 

लगता है चले गये दूर वह,

निकल चुका था मतलब जिनका हमसे,

हैं मज़बूत दीवारें वही जिन्होंने,

दिया साथ अंधेरी रातों में भी,

देख यह झुक गया सिर आभार और धन्यवाद से।


हुआ आश्चर्य देख कक्ष एक,

थी अधिकांशत: सभी दीवारें ठीक,

मिले कुछ अजनबी वहाँ,

था उनमें ठहराव, न था उन्हें,

कोई मतलब हमसें,

फिर भी थे तत्पर सदैव,

बढ़ाने को हाथ अपना,

देख यह मिला अत्यंत सुकून यहाँ ।


चलो झाँक ले अब आख़िरी कक्ष में भी,

बहुत मज़बूत हैं ये दिवारें,

जिन्हें जोड़ा हैं बच्चों के मासूम प्यार ने,

हो गयें है बड़े परन्तु है प्यार में वही मासूमियत,

करते हुये सार्थक उपाधि जीवनसंगिनी की

जोड़ दी उनकी जीवनसंगिनीयें ने भी परतें प्यार भरी,

हुआ आगमन चुलबुले,बच्चों के बच्चों का,

लग गई प्यार की परत एक और नन्हें-नन्हें हाथों से,

अब तो हो गईं दीवारें ठोस ऐसी कि 

चाह कर भी पाए न हिला कोई,

आख़िर जुड़ी हैं ईंटें ये प्यार की तीन परतों से,

देख यह टपकने लगा प्यार व आशीर्वाद मेरे अन्तर्मन से।।



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