दाद
दाद
दाद मिलती है
तो खाज होती है
फिर हम खुजाते हैं आनंद सहित
और दूसरों से कहते हैं
सिद्ध हो चुके हैं हम
आओ और खुजलाओ हमें
दूसरे इस उम्मीद में सहलाते हैं कि
कभी हमें भी दाद दिलवायेगा
किन्तु जिसे मिल चुकी हो दाद
वह और चाहता है खाज
दूसरों को मात्र अनुचर समझता है
अपनी ही खुजलाहट में डूबा हुआ
वह किसी को देता कुछ नहीं
बस लेना समझता है अधिकार
मैंने कई मंत्री देखे, जो राजा बनने की
चाह रखे हुए हैं मन में
और अनुचरों से कहते हैं, सेवा करते रहो
महराज बनोगे
कुछ तो भगवान होने का दावा करके सेवकों को
देवता बनाने की बात करते हैं
दाद वाले अपनी खाज इतनी बढा लेते हैं
उन्हें पता ही नहीं चलता कि खुजली कब
घाव में बदल गयी।