उम्र
उम्र
सारी उम्र गुजारी हमने
गम के इन तहखानों में
यारों संग मशगूल रहे तुम
बाखबर रिंद मयखानों में
फ़ुरसत न मिली कभी
इन जालिम अरमानों से
तसब्बुर में ही खोए रहे
मय शबाब ए दीवानों में
बचपन खुशियों में बीता
बाबुल तेरे आंगन में
जीवन अब जंजाल बना
दुखों के इस कानन में
फिरती हूं इन बीथियों में
अंखियों में अश्क लिए
नहीं हिसाब ,जुल्मों का
जो तूने, सारी उमर दिए
सारी उम्र गुजारी हमने
इन बेइंतहा तानों में
रखती मसरुफ़ खुद को
खवातीन घर के कामों में।