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Kishan Negi

Romance Fantasy

4.5  

Kishan Negi

Romance Fantasy

चुप क्यों हो

चुप क्यों हो

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382



कभी बताया नहीं तुमने

क्यों बेमकसद

खफा ख़फ़ा रहती हो मुझसे

जब भी चाहा मन की बेचैनी को बताना 

फिर कोई नया बहाना बनाकर

नज़रें फेर लेती हो

कोई शिकायत है मुझसे

तो खुलकर बताती क्यूं नहीं

मगर ये भी अब तक तुमसे हो न सका

मनाऊँ भी तो किसे मनाऊँ

सलीके से रूठना भी तुमको आता नहीं

जाने किस माटी की बनी हो तुम

सच है बुरा हूँ मैं

मगर इतना बुरा भी नहीं 

तुम गुमसुम रहो हर पल मेरी आंखों के सामने

और फिर तुम ये उम्मीद करो मुझसे कि

मौन रहकर देखूं तमाशा

तुम्हारे चेहरे पर तैरती खामोशियों का

ना मुझसे ये न हो पाएगा

तुमको पाकर खोना भी नहीं चाहता

और तुम मेरी होकर भी मेरा होना नहीं चाहती

बहुत हो चुका लुका छिपी का ये खेल

हो सके तो तनिक विराम दो इस कशमकश को

सांझ ढलने से पहले कहीं ढल न जाए

मेरी दीवानगी का सूरज

फिर शिकायत मत करना कि बताया नहीं

न कभी इज़हार करती हो

न कभी इकरार हो करती हो

और हाँ इंकार करने का हुनर भी ठीक से आता नहीं 

जाने किस उलझन के पहाड़ पर खड़ी होकर

कभी हवाओं की रफ़्तार नापती हो

कभी मुझे देखकर पलकें झुका लेती हो 

बस डर है तो सिर्फ़ इस बात का कि

कहीं वक़्त उड़ाकर न ले जाये

हमारी मोहब्बत के चमकीले मोतियों को

जैसे कोई बदतमीज तूफान उड़ाकर के जाता है

रेगिस्तान की मुठ्ठी से रेत के सुनहरे कण।



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