मेरी वेलेंटाइन
मेरी वेलेंटाइन
आँखें उससे चार हुई तो
शक्ल, दिलों-दिमाग में छप गई
शर्मों-हया वो लज्जा समेटे
अंतःकरण में बस गई।।
उमंग-तरंग, मनोवेग बढ़ाकर
बेखबर कुछ वक्त हुई
आकर्षण था ये मैने सोचा
उसकी ख़्वाहिश अचानक पता चली।।
परवान चढ़ा प्रेम धीरे-धीरे
जिसकी मुझे उम्मीद नहीं
दोनों पक्षों में नोंक-झोंक हुई तो
चिंता थोड़ी बढ़ने लगी।।
मिलन को दोनों तड़प उठे थे
उत्कंठा मन में ऐसी जगी
आशिक़ी दोनों की परवान चढ़ी तो
शादी की तब बात चली।।
मंडप सजा और सेहरा बंधा तब
दिव्य सुंदरी वधु बनी
देखने वाला दंग रह गया
जब सौलह श्रृंगार कर दुल्हन बनी।।
अंतस में मेरे लड्डू फूटे
विरह-विछोह की घड़ियां दूर हुई
सजदा करता ईश्वर का मैं
जो अर्चना मुझसे आन मिली।।
किस्मत का मैं धनी कहलाऊं
जो अर्धाग्नि वो मेरी बनी
उसके बिना क्या मेरा अस्तित्व
सुत राघव की जो जननी बनी।।
आधा-अधूरा खुद को पाता
मेरी पूर्णता का आभास वही
पुत्र-पिता का एक आसरा
मेरे शब्दों की वाणी वही बनी।।
थैंक यू अर्चना लव यू हमेशा