चुनाव
चुनाव
राजनीति की बिसात पर, मोहरे बिछने को तैयार हैं
यह बात कोई नई नहीं, होता यही हर बार है।
जन हित, लोक कल्याण की दुहाई दी जाएगी,
कुछ मुफ्त सामग्री देकर भावनाएं खरीदीं जायेंगीं।
चुनावी बिगुल बजते ही, क्षेत्र की सुधि ली जाएगी,
पर उसके बाद क्या होगा, ये नया नही कारोबार है।
राजनीति की बिसात पर मोहरे बिछने को तैयार हैं।
दल बदल से लेकर, नये दलों का निर्माण होगा,
कर्मयोगी बनकर कार्य रात से विहान तक होगा,
फिर जनता सेवा का ढोंग अपने परवान तक होगा
फिर जो भी होगा वह नया नही व्यापार है।
राजनीति की बिसात पर, मोहरे बिछने को तैयार हैं।
कौन नेता कौन सा दल, ये सारे ही ढकोसले हैं,
जाति धर्म के नाम पर, ये उलझाते सारे मसले हैं
सफेदपोशी की चादर ओढ़े, दिखाते हौसले हैं
जनता इन सबको देख, बीच पड़ी मँझधार है।
राजनीति की बिसात पर मोहरे बिछने को तैयार हैं।
अपनी लड़ाई खुद लड़ो, खुद ही तुम हथियार बनो,
अपने वोट की कीमत समझो, नही इसे बेकार करो,
स्वयं हित से उठकर ऊपर, देश हित का तुम सोचो,
यही इन राजनीतिज्ञों पर असली तुम्हारा वार है।