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Kumar Gaurav Vimal

Abstract

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Kumar Gaurav Vimal

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चलते -चलते

चलते -चलते

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सुकून की तलाश में थे,

सन्नाटों से टकरा गए...

चलते चलते देखो ना,

कितने दूर हम आ गए...


वो रास्ता था अंजाना सा,

पर कदम रोकना मुश्किल था...

चलते गए हम बस सरपट,

दूर जो अपना मंज़िल था...

एक आशियाने की तलाश में थे,

आसुओं के बादल छा गए...

चलते चलते देखो ना,

कितने दूर हम आ गए...


छूटा साथ हमराही का,

साथ ना अपने कोई चल पाया...

उठा कभी चोट खा कर ये,

कभी गिरकर ही न संभल पाया...

एक हमसफ़र की तलाश में थे,

हम सफर में ही समा गए...

चलते चलते देखो ना,

कितने दूर हम आ गए...


सुकून की तलाश में थे,

सन्नाटों से टकरा गए...

चलते चलते देखो ना,

कितने दूर हम आ गए...


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