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Neha anahita Srivastava

Abstract Classics

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Neha anahita Srivastava

Abstract Classics

चलो, फिर से ख़त इकबार लिखते हैं,

चलो, फिर से ख़त इकबार लिखते हैं,

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,कागज़ पर दिल के जज़्बात लिखते हैं,

चलो, फिर से ख़त इकबार लिखते हैं,

भूली हुई उन गलियों में फिर से इकबार चलते हैं,

बेसब्री से ख़तों का फिर से इंतजार करते हैं,


दो-चार लफ़्ज़ों में बयां दिल की सारी बात नहीं होती है,

आजकल कागज़ की कलम से मुलाकात नहीं होती है,

ख़तों के इंतजार में आँखें बेकरार नहीं होती हैं,

खुशबू से भरी गुलाबी सी दिल की बात नहीं होती है,


भूले-बिसरे उन रिश्तों को फिर याद करते हैं,

रिसते हुए ज़ख्मों पर सुकून भरे हर्फों का हाथ रखते हैं

खुल कर दिल की सारी बात करते हैं,

चलो, फिर से ख़त इकबार लिखते हैं।"


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