चली गई..
चली गई..
अब हिचकियाँ भी कहीं पानी की घूंट पर मर गई
गांव छोड़कर वो परछाईं भी कहीं शहर चली गई
नदिया मुड़कर भी मेरे आँखों में आ गई
तेरा इन्तज़ार कितना किया इतने में मोमबत्ती भी जल गई
हवाएं बिगड़ बिगड़ इतनी बिगड़ी की
उसकी खबर तो नहीं पर मेरे घर मे धूल आ गई
तेरे पर लिखी सारी नज्में वो कहीं पडी पडी सड़ गई
तुम जो गए दूर तो तब से मेरी नींद भी है मर गई
चलो तुम तो याद करते नहीं इसीलिए
अब हिचकियाँ भी कहीं पानी की घूंट पर मर गई
गांव छोड़कर वो परछाईं भी कहीं शहर चली गई।
