चिट्ठियां
चिट्ठियां
चिट्ठियां होती मौन जज्बे,
जो जुबां से न कह पाए।
हर शब्द में छुपी गहराई,
जो दिल से दिल में आई।
कभी उम्मीद की रौशनी,
कभी आंसुओं की बोधनी।
कभी ख़ुशियों का संदेशा,
कभी दर्द का रहता अंदेशा।
कागज़ पर करें जब लेखन,
बढ़ती है दिल की धड़कन।
अक्षरों में छिपे हुए एहसास,
जैसे रूठी कोई तपनी प्यास।
आज ईमेल और संदेशों ने,
उनका वजूद ही भुला दिया।
पर चिट्ठियों की वो सरगर्मी,
समय मिटा न सका बेधर्मी।
चिट्ठियां थीं रिश्तों की डोर,
दूरियों को पास लातीं पोर।
इनके आने की आहट से,
शब्द बनते मीठी राहत से।
