चीर हरण
चीर हरण
जब पीड़ित मन पर शर्म के पर्दे पड़े हों
तो एक नारी भला उस चीर हरण की
व्यथा किस तरह कहे ,
व्यथित है दुखी है वो घबराई सी देखती
चहुँ ओर है पर इस कलियुग में भला
कोई कृष्ण उसे कैसे मिले !
बीत गया द्ववापर, पर अब भी धृतराष्ट्र
वही हैं और आँखों में बाँध पट्टी मोहपाश
में फंसी मंदोदरी घर-घर विचर रही हैं ,
अंत हुआ नहीं दुशासन और दुर्योधन का
पांडव भी सत्ता विहीन हैं तो ऐसे में भला
किसी अबला को न्याय कैसे मिले !!