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Kumar Vikash

Tragedy

4.0  

Kumar Vikash

Tragedy

चीर हरण

चीर हरण

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जब पीड़ित मन पर शर्म के पर्दे पड़े हों

तो एक नारी भला उस चीर हरण की

व्यथा किस तरह कहे ,


व्यथित है दुखी है वो घबराई सी देखती

चहुँ ओर है पर इस कलियुग में भला

कोई कृष्ण उसे कैसे मिले !


बीत गया द्ववापर, पर अब भी धृतराष्ट्र

वही हैं और आँखों में बाँध पट्टी मोहपाश

में फंसी मंदोदरी घर-घर विचर रही हैं ,


अंत हुआ नहीं दुशासन और दुर्योधन का

पांडव भी सत्ता विहीन हैं तो ऐसे में भला

किसी अबला को न्याय कैसे मिले !!


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