Kumar Vikash

Tragedy

4.0  

Kumar Vikash

Tragedy

चीर हरण

चीर हरण

1 min
343


जब पीड़ित मन पर शर्म के पर्दे पड़े हों

तो एक नारी भला उस चीर हरण की

व्यथा किस तरह कहे ,


व्यथित है दुखी है वो घबराई सी देखती

चहुँ ओर है पर इस कलियुग में भला

कोई कृष्ण उसे कैसे मिले !


बीत गया द्ववापर, पर अब भी धृतराष्ट्र

वही हैं और आँखों में बाँध पट्टी मोहपाश

में फंसी मंदोदरी घर-घर विचर रही हैं ,


अंत हुआ नहीं दुशासन और दुर्योधन का

पांडव भी सत्ता विहीन हैं तो ऐसे में भला

किसी अबला को न्याय कैसे मिले !!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy