“ छोड़ो लड़ना भाई -भाई से “
“ छोड़ो लड़ना भाई -भाई से “
हमें डर है कोई तो गलत पाठ पढ़ा रहा हैं !
अपने भाईयों से भाईयों को आपस में लड़ा रहा है !!
धर्म , जाति और मज़हब की वीभत्स तस्वीर बनाई जाती है !
एक दूसरे से दूसरे में वैमनस्यता फैलाई जाती है !!
कभी भाषाओं का विवाद उभर आता है
कभी छोटे बड़े का एहसास हो जाता है !!
मंदिरों में मंत्राचार के मंत्र ना दुहराए जाएंगे
मस्जिदों में आज़ान जोरों से ना पढ़े जाएंगे !!
गिरजाघर और गुरुद्वारा भी बातों में उलझता चला गया
कल्याण की बातें छोड़ असमर्थता व्यक्त करता रह गया !!
हम इन छोटी -छोटी बातों पर उलझते चले गए
अपने भाईयों से बेबुनियाद हम लड़ते रहे !!
एक सक्षम राष्ट्र अपने हित के लिए छोटे राष्ट्र को रौंदता है
मासूमों का कत्लेआम करके उत्थान कभी नहीं सोचता है !!
छल -कपट का होड़ मनो व्याप्त है संसार में
सबके सब हैं लिप्त मनो कपट के बाज़ार में !!
इन ख्यालों में उलझ जाने से विश्व का विकास कैसे हो सकेगा
प्यार ,स्नेह ,सद्भावना और भाईचारे का मंत्र बोलो कैसे पढ़ेगा ?