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Arunima Bahadur

Action

4  

Arunima Bahadur

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छलना

छलना

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क्या छलना चतुराई है?

या कंटक निज राह पर बिछाई हैं।


जब जब तू छलता किसी को,

कुछ कंटक राह तेरी आ जाते है,

फिर करता तू लाख शिकवे,

ये शूल मुझे ही सताते हैं।


एक दो पल का न ये जीवन,

अनंत अनंत यात्रा है,

शूल बिछाए इस पग में,

तो कंटक दूजे पग तुझे मिलता है।


ये जीवन बस कर्मों का खेल,

बोट यहाँ तो काटे वहां है,

फिर किसी को छलना,

कब किसे फलित हुआ है।


ये चतुराई न है प्यारे,

छलावा कोई खेल नहीं,

मनुजता का इस दुर्गुण से,

कभी भी कोई मेल नहीं।।



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