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Dinesh paliwal

Inspirational

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Dinesh paliwal

Inspirational

छलांग

छलांग

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एक आसमान ही तो

बस नहीं है मैंने छुआ

इन परों में बाकी अभी

मेरी बहुत उड़ान है

दीवारें मुश्किलों की जो

ये कई लगती तुम्हें हैं

लो छत उम्मीद की डाली,

अब वो मेरा मकान है ।।


फिर न समझे ये ज़माना

कि मायूस हूँ मैं हार से

या कि बस मैं थक गया हूँ

वक़्त की इस मार से

अंदाज शेरों सा है अपना

ये जरा तुम जान लो

दो कदम पीछे लिये हैं

हो छलांग ही इस बार से ।।


रोक सकती हैं मुझे क्या

कठिनाइयां अंगुलि पकड़

या ये कुछ नाकामियां अब

लेंगी, बढ़ते कदमों को जकड़

राह की ठोकर हरेक अब

जो पत्थर बनी है मील का

ये तुम न समझोगे अभी

है मामला तफ़सील का ।।


मंजिलों की चाह में तू

बस भूलना ना राह को

एक बंध आने से ओ माझी

मत मोड़ना तू प्रवाह को

जो ठान ले तो ये जमाना

किश्ती का तेरी पाल होगा

हंसने वालों लिख के रख लो

तुम्हें खुद पे इक दिन मलाल होगा ।।


ये कविता आजकल के कंपटीशन के युग में एक बच्चे के मन के उद्गार हैं जो इन अंकों की दौड़ में घिर कर ज़माने को अपनी बात दो टूक शब्दों में इस कविता के माध्यम से कह रहा है ।।



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