चेहरे पर मुखौटा
चेहरे पर मुखौटा
न हंस रहा है
न रो रहा है
मेरे चेहरे पर से हर तरह का
भाव
उतर गया है
मेरे चेहरे पर ऐसा लग रहा जैसे कि
कोई चेहरा ही नहीं है
एक बियाबान
घना बांस का जंगल है और
दूर दूर तक फैला बस
खामोशियों का उस पर पहरा है
मन को कुछ कचोट रहा है
तन में कुछ चुभ रहा है
कांच का दिल अपना ही
कहीं किसी ठोस कारण के
टूटा है
अपने ही बाग पैरों में
नश्तर से चुभा रहे
फूलों का कहने को तो यहां
बसेरा है
खामोशी से बंद हो गये
हम अपने घर के
दरवाजे और खिड़कियों को
बंद करके
अपने घर के ही अंदर कहीं
खुद को देख नहीं पा रहे
चेहरे पर लगी थी जो आंखें
उन पर धूल और गर्द का जम गया
पर्दा है
खुद को ढूंढ रही मैं
खुद का दिल टटोल रही मैं
खुद के ही भीतर एक सुरंग में बंद
मेरा वजूद है
उसी में कहीं एक कोने में पड़ा
पहचान में नहीं आ पा रहा
पर जाना पहचाना सा था जो कभी
मेरा अपना ही तो खोया हुआ
जो मिल गया
ढूंढा तो
चेहरा है
किसी का चेहरा
एक दर्पण होता है
उसे ठीक से कोई पढ़ना
जानता हो और
समझता हो उसकी आंखों और
चढ़ते उतरते भावों की भाषा तो
जान सकता उसकी जिंदगी की
कहानी
उसका पूरा लेखाजोखा
लेकिन कभी कोई कहां जानना चाहता
किसी का सच
किसी की अनकही बातें
कहां नापना चाहता
किसी के दिल की हद
चेहरे पर चेहरा नहीं
एक मुखौटा लगाना जरूरी है
कोई हंसे तो उसके साथ हंसना
कोई रोये तो उसके साथ रोना
जरूरी है
सच नहीं
झूठ बोलना आना चाहिए
दिखावा आवश्यक है
बनावटीपन जरूरी है
अपना असली चेहरा नहीं
दिखाओ
उस पर एक नकली
दुनिया के मन मुताबिक
मुखौटा लगाओ
फिर देखना जादू
उसका असर
हंसते ही जाओगे
एक विदूषक से
हंस हंसकर फुलते ही जाओगे
लोग तुम्हें बेवकूफ बनायेंगे और
तुम उन्हें मूर्ख बनाओगे
चेहरे पर चेहरा नहीं
समय की मांग के अनुसार
बदल बदलकर जो मुखौटे
लगाओगे
आज के परिवेश में
तभी जी पाओगे
खुद खुश रह पाओगे
दूसरों को खुश रख पाओगे
दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की
कर पाओगे
सफलता की सीढ़ियां चढ़ पाओगे
लेकिन इस कटु सत्य को
स्वीकारते हुए और
आत्मग्लानि के साथ
जीते हुए कि
यह स्वयं के साथ एक धोखा था
फरेब था और
भ्रम था।
