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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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चैन भी है

चैन भी है

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चैन भी है

शिकायतें भी हैं

चाहत का जन्मना भी है

चाहत का पिघलना भी

मंसूबे का टूटना भी

मंसूबे का बंधना भी

भरोसा भी

भरोसे का टूट कर

बिखरना भी


समय के पटल पर

जीवन की यह दशा

जैसे संसद में कोई

शक्ति परीक्षण।

यकीनन न कोई हारा है

न कोई जीता है

फिर भी मनुष्य दुखी है

हारने की तरह

खुश है जितने की तरह


सुना था

जीवन पानी का बुलबुला है

और यहां तो बिना पानी

का बुलबुला है।

शुक्र है

चैन भी है

और शिकायतें भी हैं।


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