चाय और तुम
चाय और तुम
एक कप गरमा-गरम चाय की प्याली,
और उसमें नजर आती
बिल्कुल शांत सी तुम्हारी छवि निराली।
दूध सी धवल शख्सियत तुम्हारी,
और मैं कड़क चायपत्ती सी सांवली।
जरा सा रंग अपना छोड़ती हूं
घुल कर तुम में,
और तुम इलायची की तरह....
महक छोड़ते मुझ में।
बातें मेरी अदरक की तरह
तीखी नखरे वाली,
और तुम्हारी बातें,
चीनी की तरह मधुर मिठास वाली।
चाय और तुम......
दोनों ही आजकल आदत
बन गए हो मेरी।
जैसे चाय,
थकान उतारती है मेरी,
वैसे ही.....
स्फूर्ति और ताजगी भरती हैं
मुझ में बातें तेरी।
जितना भी बिखर जाऊं मैं,
तुरंत ही सहेज और समेट लेता है
तेरा प्रेम, मुझे अपने
आवरण में....
चाय के संग,
तुम भी घुलते रहते हो मुझ में।

