चारो तरफ़ मची हाहाकार
चारो तरफ़ मची हाहाकार
चारों तरफ़ मची हाहाकार,
किसका कोई हल नहीं,
कैसे बचाए ईश्वर,
जहां आरंभ से सीखा,
रहो हमेशा मिल जुल कर,
कहते वेद पुराण,
कर दिया दूर इस महामारी ने,
अब कहां से लाए,
ये दूसरे वेद पुराण,
न हो रही नसीब,
दो गज जमीन भी,
हर कोई कफन,
ओढ़ने को तैयार,
की प्रकृति से छेड़छाड़,
प्रकृति ने किया ये उपकार,
सीखा था बचपन से,
करो रक्षा मानव हो या पशु,
झुठला दिया मानव ने ही,
डुबो दिया पूरा संसार,
कभी हथिनी के मुंह में पटाखा,
कभी गौ के मुख का विसफोट,
यही तो किया उपकार,
कह रही प्रकृति,
कैसे छोड़ूं मानव,
तूने ही तो किया शर्मसार,
है मानव जीवन अनमोल,
न समझा तू मोल इसका,
मैं भी तुझसे लड़ने को तैयार।