चाहत
चाहत
हमसे न रहो दूर अब करीब आ जाओ
चाहा है तुम्हें हमने अपनों की तरह।
नशा सा छा जाता है फिजां में
मयखाने में छलकते जाम की तरह।
अब क्या रहम भी दिखाए हम।
जख्मों को छुआ है तेरे गालों की तरह
मुझ को मिला क्या मेहनत का सिला
चंद सिक्के हैं हाथ में छालों की तरह।
फ़िक्र ने किसी मंजिल पे ठहरने न दिया
हम भटकते रहें आवारा ख्यालों की तरह।
जिसको तेरा प्यार मिला वो जाने
हम तो रहे नाकाम चाहने वालों की तरह।

