चाहत
चाहत
सूनी सी आंगन की दहलीज चाहत करती है
हवा यूं ही उनके आने की आहट करती है
मुद्दत से न आया कोई खत न खबर कोई
बिंदिया भी अब आईने से शिकायत करती है
तू रहे महफूज़- ए- मुक्कम्मल जहां में हमेशा
दुआ मेरी ख़ुदा से बस यही इबादत करती है
वो आएगा.. लौट आएगा ज़रूर इक दिन
सासें मेरी जमाने से तेरी वकालत करती है
दिल की हसरत थी दीदार नजर भर "दर्शी"
क्यूँ दुनिया इस पर भी सियासत करती है