चाहत थी सरफरोश की
चाहत थी सरफरोश की
जो सोचती हूँ,
वो जता नही पाती,
क्योंकि डरती हूँ।
हिंसा और अपवाद से,
इस शोषित समाज से।
प्यार तो बहुत करती हूं
जता नहीं पाती,
क्योंकि डरती हूँ।
स्नेह तो बहुत है,
धोखा मिलते ही ,
खून खौलता है,
उबलता है खून मेरा,
जब करूणा से कोई खेले।
जब एक सत्तासीन,
कष्ट दे ।
एक सत्ताविहीन को,
घसीटता है नोचता है,
खत्म कर दे आत्मा की आवाज को।
तुम सुंदर नही कुरुप हो,
तुम चली जाओ।
तुम चुप हो जाओ,
बिल्कुल भी मत चिल्लाओ,
इस वजह से अपना ,
प्यार, स्नेह जता नहीं पाती।
यही वजह है
डर डर कर जीती हूँ,
क्योंकि डरती हूँ।
