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Ajay Gupta

Tragedy

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Ajay Gupta

Tragedy

बुढ़ापे की लाठी

बुढ़ापे की लाठी

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कब सोचा था जीवन संध्या

ऐसा दिन दिखलाएगी

कब सोचा था इस जीवन में

यह घड़ी भी आएगी


जिसको अपने हाथ से मैंने

खाना खाना सिखलाया

जिसको मैंने ही पैरों पर

खड़ा किया और चलवाया


जिसको समझा था मेरे है

वह बुढ़ापे की लाठी

कहाँ पता था नहीं वह है

मेरी ज़रूरत का साथी


लेकिन बेटा याद रहे यह

बीत रही जो मुझ पर

चाहे ना चाहे पर कल ये

बीत न जाये तुझ पर



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