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Zahiruddin Sahil

Tragedy

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Zahiruddin Sahil

Tragedy

बुनियाद हूँ

बुनियाद हूँ

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घर के दर- ओ -दिवार की रौनक हूँ

इसकी मजबूती ,इसकी बुनियाद हूँ


मुझसे है ज़िंदा इसकी ज़ेब ओ ज़ीनत

ये मुझसे और मैं इससे आबाद हूँ


बाप के कलेजे की राहत

माँ की दिलो-जां,चाहत,

शौहर के अरमानों की मूरत

बच्चों की ढाल,हिफाज़त,

हाँ मैं औरत हूँ,

सबकी ज़रूरत हूँ।



हर ज़िस्म के पैरों में बिछी

मैं उसकी परछाईं हूँ

सब कुछ हूँ मैं सबकी

मगर जाने क्यों..." मैं पराई हूँ !!"


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